Monday, December 13, 2010

तू

सफ़ेद पन्नो की काली स्याही मैं कहाँ तू समझ आता था,
अँधेरी रात में दिए तले कहाँ तू नज़र आता था,
बाज़ार के शोर गुल में कहाँ तू सुनाई देता था,
में तो बस तुझे अपनी धड़कन में महसूस करता हूँ,
और उसे में हरदम साथ लिए चलता हूँ.

2 comments:

divya said...

sublime... :)

Anonymous said...

absolutely so :)