Saturday, November 13, 2010

random lines

इस छोर से उस छोर तक
समंदर ही समंदर है
समंदर में लहरें हैं और
लहरों में समंदर है
हवा में तेरी खुशबू है और
खुशबू हवा का एहसास दिलाती है.......

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कल रात की गहराई में कुछ छूट गया था
चाँद भी था और चांदनी भी
तारों की जगमगाहट भी थी
पर कुछ तो साथ नहीं था
वजूद भी मौजूद था
बस "मैं" ही छूट गया था

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कल रात लंग्या सी ओ मैनु
मुर के केहा " चल आ चल मेरे नाल"
अप दो ही कदम चले सन की तू छड गया मेरा साथ
पर राह शायद सही है.
शायद असी फेर मिलिए
थोड़ी नेहीं ता थोड़ी जयादा दूर

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मैं मुस्कराया , मेनू देख ओ वि मुस्कराया
हसदे हसदे कुछ समां बीत गया
सुबह हो गयी सी ...
मैं देख्या दो जन मुस्करा रहे सन
इक मैं ते इक मेरा अंतर
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2 comments:

divya said...

simply beautiful...no other words :)

Anonymous said...

Beautiful indeed -- good to see you back :)