इस छोर से उस छोर तक
समंदर ही समंदर है
समंदर में लहरें हैं और
लहरों में समंदर है
हवा में तेरी खुशबू है और
खुशबू हवा का एहसास दिलाती है.......
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कल रात की गहराई में कुछ छूट गया था
चाँद भी था और चांदनी भी
तारों की जगमगाहट भी थी
पर कुछ तो साथ नहीं था
वजूद भी मौजूद था
बस "मैं" ही छूट गया था
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कल रात लंग्या सी ओ मैनु
मुर के केहा " चल आ चल मेरे नाल"
अप दो ही कदम चले सन की तू छड गया मेरा साथ
पर राह शायद सही है.
शायद असी फेर मिलिए
थोड़ी नेहीं ता थोड़ी जयादा दूर
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मैं मुस्कराया , मेनू देख ओ वि मुस्कराया
हसदे हसदे कुछ समां बीत गया
सुबह हो गयी सी ...
मैं देख्या दो जन मुस्करा रहे सन
इक मैं ते इक मेरा अंतर
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Saturday, November 13, 2010
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